चक्रव्यूह
को युग का सर्वश्रेष्ठ सैन्य व्यूह माना जाता था … ।
विश्व का सबसे
बड़ा युद्ध था महाभारत का युद्ध। यह वर्तमान हरियाणा राज्य के कुरुक्षेत्र में 5000
वर्ष पूर्व हुआ था। इतिहास में इतना
भयंकर युद्ध केवल एक बार ही घटित हुआ है। अनुमान है कि महाभारत के कुरुक्षेत्र
युद्ध में परमाणू हथियारों(ब्रह्मास्त्र) का उपयॊग भी किया गया था।
युद्ध में सैन्य
रणनीति अनुसार व्यूहरचना होती रही है,जिनके नाम आकृति
के अनुसार होते थे।इनमें सर्वाधिक कौतूहल का विषय रहा है चक्रव्यूह। ‘चक्र’ यानी
‘पहिया’ और ‘व्यूह’ यानी ‘गठन’।
पहिए की जैसे
घूमता हुआ व्यूह है चक्रव्यूह। कुरुक्षेत्र युद्ध का सबसे खतरनाक रण तंत्र था
चक्रव्यूह।यद्यपि आज का आधुनिक जगत भी चक्रव्यूह जैसे रण तंत्र से अनभिज्ञ है।
चक्रव्यू या पद्मव्यूह को बेधना असंभव ही था। द्वापरयुग में केवल सात लोग ही इसे
बेधना जानते थे।
भगवान कृष्ण के
अलावा अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थाम और
प्रद्युम्न ही व्यूह बेधन जानते थे। अभिमन्यु केवल चक्रव्यूह के अंदर प्रवेश करना
जानता था।
चक्रव्यूह में
कुल सात परत होती थी। सबसे अंदरूनी परत में सबसे शौर्यवान सैनिक तैनात होते थे। यह
परत इस प्रकार बनाये जाते थे कि बाहरी परत के सैनिकों से अंदर की परत के सैनिक
शारीरिक और मानसिक रूप से ज्यादा बलशाली होते थे। सबसे बाहरी परत में पैदल सैन्य
के सैनिक तैनात हुआ करते थे।
अंदरूनी परत में
अस्र शत्र से सुसज्जित हाथियों की सेना हुआ करती थी। चक्रव्यूह की रचना एक भूल
भुलैय्या के जैसे हॊती थी जिसमें एक बार शत्रु फंस गया तो घन चक्कर बनकर रह जाता
था।
चक्रव्यूह में
हर परत की सेना घड़ी के कांटे के जैसे ही हर पल घूमता रहता था। इससे व्यूह के अंदर
प्रवेश करने वाला व्यक्ति अंदर ही खॊ जाता और बाहर जाने का रास्ता भूल जाता था।
महाभारत में व्यूह की रचना गुरु द्रॊणाचार्य ही करते थे। चक्रव्यूह को युग का
सर्वश्रेष्ठ सैन्य व्यूह माना जाता था। इस व्यूह का गठन युधिष्टिर को बंदी बनाने
के लिए ही किया गया था।
माना जाता है कि
48 गुणा 128 किलॊमीटर के क्षेत्रफल में
कुरुक्षेत्र नामक जगह पर युद्ध हुआ था जिसमें भाग लेने वाले सैनिकों की संख्या 1.8
मिलियन थी!यानी 18 करोड़!
चक्रव्यूह को
घुमता हुआ मौत का पहिया भी कहा जाता था। क्यों कि एक बार जो इस व्यूक के अंदर गया
वह कभी बाहर नहीं आ सकता था। यह पृथ्वी की ही तरह अपने अकस में घूमता था साथ ही
साथ हर परत भी परिक्रमा करती हुई घूमती थी।
इसी कारण से
बाहर जाने का द्वार हर वक्त अलग दिशा में बदल जाता था जो शत्रु को भ्रमित करता था।
अद्भुत और अकल्पनीय युद्ध तंत्र था चक्रव्यूह। आज का आधुनिक जगत भी इतने उलझे हुए
और असामान्य रण तंत्र को युद्ध में नहीं अपना सकता है। ज़रा सॊचिये कि सहस्र सहस्र
वर्ष पूर्व चक्रव्यूह जैसे घातक युद्ध तकनीक को अपनाने वाले कितने बुद्धिमान रहे
होंगे।
चक्रव्यूह ठीक
उस आंधी की तरह था जो अपने मार्ग में आनेवाले हर चीज को तिनके की तरह उड़ाकर नष्ट
कर देता था। इस व्यूह को बेधने की जानकारी तब केवल सात लोगों के ही पास थी।
अभिमन्यू व्यूह
के भीतर प्रवेश करना जानता था लेकिन बाहर निकलना नहीं जानता था। इसी कारणवश कौरवों
ने छल से अभिमन्यु की हत्या कर दी थी। माना जाता है कि चक्रव्यूह का गठन शत्रु
सैन्य को मनोवैज्ञानिक और मानसिक रूप से इतना जर्जर बनाता था कि एक ही पल में
हज़ारों शत्रु सैनिक प्राण त्याग देते थे। कृष्ण, अर्जुन, भीष्म, द्रॊणाचार्य, कर्ण, अश्वत्थामा
और प्रद्युम्न के अलावा चक्रव्यूह से बाहर निकलने की रणनीति किसी के भी पास नहीं
थी।
अपको जानकर
आश्चर्य होगा कि संगीत या शंख के नाद के अनुसार ही चक्रव्यूह के सैनिक अपने स्थिती
को शीघ्रता से बदल सकते थे। कॊई भी सेनापति या सैनिक अपनी मन मर्ज़ी से अपनी स्थिती
को बदल नहीं सकता था। अद्भूत अकल्पनीय। सदियों पूर्व ही इतने वैज्ञानिक रीति से
अनुशासित रणनीति का गठन करना सामान्य विषय नहीं है।
महाभारत के
युद्ध में कुल तीन बार चक्रव्यूह का गठन किया था, जिनमें से एक
में अभिमन्यू की म्रुत्यू हुई थी। केवल अर्जुन ने कृष्ण की कृपा से चक्रव्यूह को
बेध कर जयद्रथ का वध किया था। हमें गर्व होना चाहिए कि हम उस देश के वासी हैं जिस
देश में सदियों पूर्व के विज्ञान और तकनीक का अद्भुत निदर्शन देखने को मिलता है।
निस्संदेह चक्रव्यूह न भूतो न भविष्यति युद्ध तकनीक था। न भूत काल में किसी ने
देखा और ना भविष्य में कॊई इसे देख पायेगा।
मध्य प्रदेश के 1 स्थान
और कर्नाटक के शिवमंदिर में आज भी चक्रव्यूह का प्रारूप बना हुआ है।
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