प्रभु
भक्ति नहीं भाव से दर्शन देते हैं।
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बहुत ही प्रेरक प्रसंग है…
एक आलसी लेकिन
भोलाभाला युवक था आनंद। दिन
भर कोई काम नहीं करता बस खाता ही रहता और सोता रहता। घर वालों ने कहा चलो जाओ निकलो घर से, कोई
काम धाम करते नहीं हो बस पड़े रहते हो।
वह घर से निकल कर यूं ही भटकते हुए एक आश्रम पहुंचा। वहां उसने देखा कि एक गुरुजी हैं उनके
शिष्य कोई काम नहीं करते बस मंदिर की पूजा करते हैं। उसने मन में सोचा यह बढिया है कोई काम
धाम नहीं बस पूजा ही तो करना है।
गुरुजी के पास
जाकर पूछा, क्या मैं यहां रह सकता हूं।
गुरुजी बोले हां, हां क्यों नहीं? लेकिन मैं कोई काम नहीं कर सकता हूं
गुरुजी। कोई काम नहीं
करना है बस पूजा करनी होगी। आनंद
: ठीक है वह तो मैं कर लूंगा … अब
आनंद महाराज आश्रम में रहने लगे। ना
कोई काम ना कोई धाम बस सारा दिन खाते रहो और प्रभु मक्ति में भजन गाते रहो। महीना भर हो गया फिर एक दिन आई एकादशी। उसने रसोई में जाकर देखा खाने की कोई
तैयारी नहीं थी। उसने गुरुजी से
पूछा आज खाना नहीं बनेगा क्या। गुरुजी
ने कहा नहीं आज तो एकादशी है। तुम्हारा
भी उपवास है । उसने कहा नहीं
अगर हमने उपवास कर लिया तो कल का दिन ही नहीं देख पाएंगे हम तो …. हम नहीं कर सकते
उपवास… हमें तो भूख लगती है। आपने
पहले क्यों नहीं बताया? गुरुजी
ने कहा ठीक है तुम ना करो उपवास, पर खाना भी तुम्हारे लिए कोई और नहीं
बनाएगा तुम खुद बना लो। मरता
क्या न करता गया रसोई में, गुरुजी फिर आए ”देखो अगर तुम खाना बना
लो तो राम जी को भोग जरूर लगा लेना और नदी के उस पार जाकर बना लो रसोई। ठीक है, लकड़ी, आटा, तेल, घी, सब्जी
लेकर आंनद महाराज चले गए, जैसा तैसा खाना भी बनाया, खाने
लगा तो याद आया गुरुजी ने कहा था कि राम जी को भोग लगाना है।
वह भजन गाने
लगा…आओ मेरे राम जी , भोग लगाओ जी प्रभु राम आइए, श्रीराम
आइए मेरे भोजन का भोग लगाइए… कोई
ना आया, तो बैचैन हो गया कि यहां तो भूख लग रही है और राम जी आ ही नहीं रहे। भोला मानस जानता नहीं था कि प्रभु
साक्षात तो आएंगे नहीं । पर
गुरुजी की बात मानना जरूरी है। फिर
उसने कहा , देखो प्रभु राम जी, मैं समझ गया कि आप क्यों नहीं आ रहे
हैं। मैंने रूखा सूखा
बनाया है और आपको तर माल खाने की आदत है इसलिए नहीं आ रहे हैं। तो सुनो प्रभु … आज वहां भी कुछ नहीं
बना है, सबकी एकादशी है, खाना हो तो यह भोग ही खालो।
श्रीराम अपने
भक्त की सरलता पर बड़े मुस्कुराए और माता सीता के साथ प्रकट हो गए। भक्त असमंजस में। गुरुजी ने तो कहा था कि राम जी आएंगे
पर यहां तो माता सीता भी आईं है और मैंने तो भोजन बस दो लोगों का बनाया हैं। चलो कोई बात नहीं आज इन्हें ही खिला
देते हैं। बोला प्रभु मैं
भूखा रह गया लेकिन मुझे आप दोनों को देखकर बड़ा अच्छा लग रहा है। लेकिन अगली एकादशी पर ऐसा न करना पहले
बता देना कि कितने जन आ रहे हो। और
हां थोड़ा जल्दी आ जाना। राम
जी उसकी बात पर बड़े मुदित हुए। प्रसाद
ग्रहण कर के चले गए।
अगली एकादशी तक
यह भोला मानस सब भूल गया। उसे
लगा प्रभु ऐसे ही आते होंगे और प्रसाद ग्रहण करते होंगे। फिर एकादशी आई। गुरुजी से कहा, मैं
चला अपना खाना बनाने पर गुरुजी थोड़ा ज्यादा अनाज लगेगा, वहां
दो लोग आते हैं। गुरुजी
मुस्कुराए, भूख के मारे बावला है।
ठीक है ले जा और अनाज लेजा।
अबकी बार उसने तीन लोगों का खाना बनाया। फिर गुहार लगाई प्रभु राम आइए, सीताराम
आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए…
प्रभु की महिमा भी निराली है।
भक्त के साथ कौतुक करने में उन्हें भी बड़ा मजा आता है। इस बार वे अपने भाई लक्ष्मण, भरत
शत्रुघ्न और हनुमान जी को लेकर आ गए।
भक्त को चक्कर आ गए।
यह क्या हुआ।
एक का भोजन
बनाया तो दो आए आज दो का खाना ज्यादा बनाया तो पूरा खानदान आ गया। लगता है आज भी भूखा ही रहना पड़ेगा। सबको भोजन लगाया और बैठे-बैठे देखता
रहा। अनजाने ही उसकी
भी एकादशी हो गई। फिर अगली एकादशी
आने से पहले गुरुजी से कहा, गुरुजी, ये आपके प्रभु
राम जी, अकेले क्यों नहीं आते हर बार कितने सारे लोग ले आते हैं? इस बार अनाज ज्यादा देना। गुरुजी को लगा, कहीं
यह अनाज बेचता तो नहीं है देखना पड़ेगा जाकर।
भंडार में कहा इसे जितना अनाज चाहिए दे दो और छुपकर उसे देखने चल
पड़े। इस बार आनंद ने
सोचा, खाना पहले नहीं बनाऊंगा, पता नहीं कितने
लोग आ जाएं। पहले बुला लेता हूं फिर बनाता हूं। फिर टेर लगाई प्रभु राम आइए , श्री
राम आइए, मेरे भोजन का भोग लगाइए।
सारा राम दरबार मौजूद।
इस बार तो हनुमान जी भी साथ आए लेकिन यह क्या प्रसाद तो तैयार ही
नहीं है। भक्त ठहरा भोला
भाला, बोला प्रभु इस बार मैंने खाना नहीं बनाया, प्रभु
ने पूछा क्यों? बोला, मुझे
मिलेगा तो है नहीं फिर क्या फायदा बनाने का, आप ही बना लो और
खुद ही खा लो। राम जी
मुस्कुराए, सीता माता भी गदगद हो गई उसके मासूम जवाब से।
लक्ष्मण जी बोले
क्या करें प्रभु। प्रभु बोले भक्त
की इच्छा है पूरी तो करनी पड़ेगी।
चलो लग जाओ काम से। लक्ष्मण
जी ने लकड़ी उठाई, माता सीता आटा सानने लगीं।
भक्त एक तरफ बैठकर देखता रहा।
माता सीता रसोई बना रही थी तो कई ऋषि-मुनि, यक्ष, गंधर्व
प्रसाद लेने आने लगे। इधर
गुरुजी ने देखा खाना तो बना नहीं भक्त एक कोने में बैठा है। पूछा बेटा क्या बात है खाना क्यों नहीं
बनाया? बोला, अच्छा
किया गुरुजी आप आ गए देखिए कितने लोग आते हैं प्रभु के साथ। गुरुजी बोले, मुझे
तो कुछ नहीं दिख रहा तुम्हारे और अनाज के सिवा।
भक्त ने माथा
पकड़ लिया, एक तो इतनी मेहनत करवाते हैं प्रभु, भूखा भी रखते
हैं और ऊपर से गुरुजी को दिख भी नहीं रहे यह और बड़ी मुसीबत है। प्रभु से कहा, आप
गुरुजी को क्यों नहीं दिख रहे हैं?
प्रभु बोले : मैं उन्हें नहीं दिख सकता। बोला : क्यों वे तो बड़े पंडित हैं, ज्ञानी
हैं विद्वान हैं उन्हें तो बहुत कुछ आता है उनको क्यों नहीं दिखते आप? प्रभु बोले , माना
कि उनको सब आता है पर वे सरल नहीं हैं तुम्हारी तरह। इसलिए उनको नहीं दिख सकता। आनंद ने गुरुजी से कहा, गुरुजी
प्रभु कह रहे हैं आप सरल नहीं है इसलिए आपको नहीं दिखेंगे। गुरुजी रोने लगे वाकई मैंने सबकुछ पाया
पर सरलता नहीं पा सका तुम्हारी तरह, और प्रभु तो मन
की सरलता से ही मिलते हैं। प्रभु
प्रकट हो गए और गुरुजी को भी दर्शन दिए।
इस तरह एक भक्त के कहने पर प्रभु ने रसोई भी बनाई। भक्ति का प्रथम मार्ग सरलता है। 💐💐💐💐💐💐
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