जानें
कैसे शुरू हुई “अन्नकूट” उत्सव मनाने की परंपरा !
“अन्नकूट
उत्सव” दिवाली के ठीक अगले दिन कार्तिक शुक्ल की प्रतिपदा तिथि को मनाया जाता है।
है। अन्नकूट, जिसे गोवर्धन पूजा भी कहा जाता है, इसकी शुरुआत
भगवान श्री कृष्ण के अवतार के बाद द्वापर युग से हुई। अन्नकूट शब्द का अर्थ होता
है “अन्न का समूह”। अलग-अलग प्रकार के अन्न को समर्पित और वितरित करने के कारण ही
इस पर्व का नाम अन्नकूट पड़ा। इस दिन मंदिरों में भगवान को अनेक प्रकार के पकवान, मिठाई
आदि का भोग लगाया जाता है। वैसे तो ये उत्सव देश के कई राज्यों में मनाया जाता है, लेकिन
इस त्यौहार की विशेष छटा आपको ब्रज में देखने को मिलेगी, क्योंकि
ब्रजवासियों का यह मुख्य त्योहार है और वो इसे बहुत ही धूम-धाम से मनाते हैं।
लेकिन क्या आप जानते हैं कि अन्नकूट उत्सव क्यों मनाया जाता है! अगर आपको इसकी
जानकारी नहीं है, तो चलिए आज इस लेख में आपको बताते हैं कैसे इस परंपरा की शुरुआत हुई।
ऐसे
हुई अन्नकूट उत्सव की शुरुआत
विष्णु पुराण के
अनुसार एक बार देवराज इंद्र ने अपने अहंकार में गोकुल में मूसलाधार वर्षा शुरू कर
दी। इस दौरान श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों को बचाने के लिए अपनी सबसे छोटी अंगुली पर
गोवर्धन पर्वत को उठा लिया और 7 दिन गोकुल वासियों को प्रलयकारी बारिश
में बचा कर रखा। इसके बाद इंद्र को यह अहसास हुआ कि उनका मुकाबला करने वाला कोई
साधारण मनुष्य नहीं, बल्कि स्वयं भगवान श्री
कृष्ण हैं, तो उन्होंने अपनी गलती स्वीकारते हुए क्षमा याचना की। तब जा कर भगवान
श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को नीचे रखा और हर साल गोवर्धन पूजा कर के अन्नकूट
उत्सव मनाने की आज्ञा दी। तब से यह उत्सव 'अन्नकूट' के
नाम से मनाया जाने लगा।
तरह-तरह
के व्यंजनों के लगते हैं भोग
अन्नकूट उत्सव
के दिन मंदिरों में अनेकों प्रकार की खाद्य सामग्रियों को मिलाकर एक खास प्रसाद
बनाया जाता है, जिसे अन्नकूट कहते हैं। अन्न कूट यानि कई प्रकार के अन्न का मिश्रण, जिसे
भगवान श्री कृष्ण को भोग के रूप में चढ़ाया जाता है। कुछ जगहों पर लोग विशेष रूप
से बाजरे की खिचड़ी भी बनाते हैं। अन्न कूट के साथ-साथ भोग में दूध से बनी मिठाई
और स्वादिष्ट पकवान चढ़ाए जाते हैं। पूजा के बाद इन पकवानों को श्रद्धालुओं के बीच
प्रसाद के रूप में बांट दिया जाता है। कई मंदिरों में अन्नकूट उत्सव के दिन जगराता
करते हैं और भगवान श्री कृष्ण से खुशहाल जीवन की कामना की जाती है।
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